गुनगुनाते रहें गीत गाते रहें
हम नए साल में मुसकुराते रहें
खूं के छींटे कहीं भी दिखाई न दें
हम जहाँ भी रहें खिलखिलाते रहें
चाँद निकले तो सहमे न अबके बरस
रोज़ हम चाँदनी में नहाते रहें
लाख आँधी चले नफ़रतों की कहीं
प्यार की पौध को हम बचाते रहें
ज़िंदगी के सफ़र में कोई भी मिले
हम उसे अपना हमदम बनाते रहें
घर किसी का न डूबे अंधेरों में अब
हम हर इक घर में दीपक जलाते रहें
ठोकरों की हमें कोई परवा न हो
जो गिरे हम उसी को उठाते रहें
इस ज़माने से घायल न घबराएँ हम
गीत ग़ज़लों की महफ़िल सजाते रहें
राजेंद्र पासवान घायल
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