आमों पर खूब बौर आए
भँवरों की टोली बौराए
बगिया की अमराई में फिर
कोकिल पंचम स्वर में गाए।
फिर उठें गंध के गुब्बारे
फिर महके अपना चंदन वन
नव वर्ष तुम्हारा अभिनंदन
गौरैया बिना डरे आए
घर में घोंसला बना जाए
छत की मुंडेर पर बैठ काग
कह काँव-काँव फिर उड़ जाए
मन में मिसिरी घुलती जाए
सबके आँगन हों सुखद सगुन।
नव वर्ष तुम्हारा अभिनंदन
बच्चों से छिने नहीं बचपन
वृद्धों का ऊबे कभी न मन
हो साथ जोश के होश सदा
मर्यादित बने रहें जन मन
ऐसे दुख कभी नहीं आएँ
बदरंग हो जाए घर आँगन।
नव वर्ष तुम्हारा अभिनंदन
घाटी में फिर से फूल खिलें
फिर रुके शिकारे तैर चलें
बह उठे प्रेम की मंदाकिनी
हिमशिखर हिमालय से पिघलें।
सोनी मचले महिवाल चले
राँझे की हीर करे नर्तन
नव वर्ष तुम्हारा अभिनंदन
विज्ञान ज्ञान के छुए शिखर
पर चले शांति के ही पथ पर
हिंदी भाषा के पंख लगा
कंप्यूटर जी पहुँचें घर-घर।
वह देश रहे खुशहाल 'व्योम'
धरती पर जहाँ प्रवासी जन
नव वर्ष तुम्हारा अभिनंदन
डॉ.जगदीश व्योम
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