अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

श्याम निंगोड़े ने
     

 





 

 


 




 


दधि लेकें जो मैं घर से निकरी,
वा ने आए अचक बहियाँ पकरी,
मरी लाज तैं मैं सिमटी सिकुरी,
कहँ धोती गई कहँ गई चुनरी,
मोहे छोड़ गईं सखियाँ सिगरी,
न जीते बने न सखी मैं मरी,
जा श्याम निंगोड़े ने ऐसी करी।

मेरी कौन सुने मैंने सब तें कही,
कसके बड़ी ढीठ ने बहियाँ गही,
मेरे नैनन से जल-धार बही,
नहीं एक सुनी मैंने कित्ती कही,
सौं नन्द-जसोदा की मैंने दई,
गगरी फोरी मेरो फैल्यो दही,
जा श्याम निंगोड़े ने ऐसी करी।

चितवै कजरीली चितवन तें,
कैसो जादू करयो मृदुमुस्कन तें,
सिसकी सी निकसी अधरन तें,
मदहोस कियो बंसी-धुन तें,
सौ बार जीई सौ बार मरी,
वा दिन तें न मैं घर तें निकरी,
जा श्याम निंगोड़े ने कैसी करी।

- रमेशचंद्र शर्मा “आरसी”
३० अगस्त २०१०

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter