अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

मेरा भारत 
 विश्वजाल पर देश-भक्ति की कविताओं का संकलन 

 

पंछी जागे, गाएँ प्रभाती

पंछी जागे, गाएँ प्रभाती
झूले पवन-हिंडोले
छुगनी पर पंछी मन मेरा
डोले हौले-हौले

धीरे- धीरे मन के द्वारे
आ पहुँची है भोर नई
धरती के आँचल में बिखरे
सुरधनु वाले रंग कई
पूरब की सोने-सी भाषा
संतों-सा सूरज बोले

कोमल-कोमल एहसासों के
पेंगें भरते छौने
गतिरोधों के गजराजों के
क़द लगते हैं बौने
जर-जर संकल्पों के मुखडे़
फिर से उजले-धौले

अँधियाए मौसम की बीती
रजनी वाली यादें
अँखुआई है भोले मन की
भोली- भाली साधें
चिड़िया के नन्हें- सा सपना
रह- रह कर मुँह खोले

कितनी राह तकी, अब आए
मनचाहे पल अपने
गत अनुभव शंकित है, शायद
पूरे होंगे सपने
क्षितिजों के मालिक युग- युग से
देते आए झोले

-शशिकांत गीते
१ अगस्त २०१९


इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter