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ममतामयी
माँ को समर्पित रचनाओं का अनमोल संकलन

 


माँ 

माँ
भोजन के पहले कौर के साथ
सोचती है इकलौते बेटे की भूख
जिसके लिये गुज़ारी है तमाम उम्र

माँ
सूप में फटकने को गेहूँ लेकर
गिनने लगती है
सत्रह साल के बेटे को
नौकरी के लिये गाँव से दूर भेजना
पसीने से छलछला आती है पीठ
जिसपे झेली हैं सर्द रातें, पुरवा की उमस
सावन भादों की काली रात

माँ
कभी कभी बेबस और निरीह लगती माँ
देवी की मनौती और बेटे के संघर्ष के बीच
बुदबुदाती है, दार्शनिक भाव से
मैं पूछती हूँ आखिर एक अगरबत्ती से
"क्या लहलहा उठेंगी हमारी घर की खुशियाँ?"
माँ . . . हुँह के साथ
चेहरे पर आई सघन पीड़ा छुपा नहीं पाती
आशाएं आकुल हो उठती हैं
आजकल माँ बेचैन रहती है
कफन पढ़ कर . . .

— रेनू सिंह

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