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ममता लुटाती थी माँ

 

 

 
 
याद है कितनी ममता लुटाती थी माँ
रूठ जाते थे हम तो मनाती थी माँ

गुस्से में जब कभी डाँटती थी हमें
ख़ुद भी रोती थी हमको रुलाती थी माँ

ज़ख़्म खाकर कहीं से जो घर लौटते
आँख भर-भरके मरहम लगाती थी माँ

माँ को भर पेट खाते न देखा कभी
ख़ुद न खाती थी हमको खिलाती थी माँ

माँ की ममता का रंग एक ऐसा भी था
बिन पढ़े कुछ भी हमको पढ़ाती थी माँ

नींद में भी जो करवट बदलते थे हम
थपकी दे-देके हमको सुलाती थी माँ

चलते - चलते न पाँओं में छाले पड़ें
गोद में हमको झटसे उठाती थी माँ

याद है इतना 'घायल' हमें आज भी
हर बला से हमेशा बचाती थी माँ

राजेन्द्र पासवान 'घायल'
३० सितंबर २०१३

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