अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

           
                 माटी का घट
 
देर सवेर सभी ने मानी
दुनिया है बस आनी-जानी

माटी का घट, उसमें पानी
बाहर पानी, भीतर पानी
कबीरा कहता रहा जगत से
टूट गया घट यों आसानी
अन्तर-घट को देख रे प्रानी
मूरख मत बन रे अज्ञानी

मृग कस्तूरी ढूँढे वन में
हमने मंदिर-मस्जिद जानी
बादल छाते नील गगन में
सूरज छुपता यही कहानी
कब से भटक रहा अभिमानी
तृष्णा करती है मनमानी

तन के पंचतत्व पिजरे से
पंछी उड़ जाना है इक दिन
जीवन की आपाधापी में
काट रहे हम पल-छिन गिन-गिन
जोड़-तोड़ में लगे हुए हम
हमने नहीं किसी की मानी

- सुरेन्द्र कुमार शर्मा
१ अक्टूबर २०२४
           

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter