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                   मिट्टी का कर्ज
 
मिट्टी से जो रिश्ता-नाता
वो रिश्ता खूब निभाया है
ओढ़ तिरंगा माँ के अँगना
तू अब लौट के आया है

खेल-खेल में इस मिट्टी में
तूने तकदीर बनाई थी
आड़ी-तिरछी रेखाओं से
इक तस्वीर बनाई थी
आज उसी तस्वीर में तूने
अपना रूप दिखाया है
बलिदानी का चोला पहने
तू जो लौट के आया है

बीहड़-जंगल छान के तूने
दुश्मन पर प्रहार किया
पर्वत-दरिया लाँघ के तूने
चुन-चुन कर संहार किया
ओ सीमा के प्रहरी! तूने
देश का मान बढ़ाया है
कथनी-करनी एक हुए
यह सच करके दिखलाया है

इस मिट्टी में तेरी काया
इक दिन जब मिल जायेगी
गर्वित होगी धरती जब वह
तेरी माँ कहलायेगी
जिस मिट्टी में पले बढ़े
उसने ही गले लगाया है
ओ रे बन्ने! तूने तो
मिट्टी का क़र्ज़ चुकाया है

- शशि पाधा
१ अक्टूबर २०२४
           

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