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                   माटी का संदेश
 
माटी छू ले जो तलवों को
कहाँ खोया वह देश
दूब उगाती माटी का अब
मिटा है हर सन्देश

माटी के साझा चूल्हे में
गूँथे रहे सब अन्न
माटी घट में पड़ा नीर भी
होता रहा प्रसन्न
उलट गयी चौका की चौकी
लगी मेज को ठेस

मिट्टी वाली चौपालों पर
पसर गया सन्नाटा
गेहूँ वाली चक्की चुप है
पिसा नहीं है आटा
मटके में हो रहे विसर्जित
इको-फ़्रेंडली गणेश

सूखी सूखी माटी पर अब तो
जमी नहीं है काई
पनघट पर बातों की फिसलन
कहाँ छुपी है माई
माटी पड़ती भूतकाल पर
मिलता नवल निर्देश

लुप्त घरौंदे माटी वाले
कुलिया-चुकिया लुप्त
चकमक चकमक बल्ब रौशनी
दीये पड़ गए सुस्त
माटी में है माटी का तन
आया परम आदेश

- ऋता शेखर 'मधु'
१ अक्टूबर २०२४
           

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