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               मिट्टी मेरे गाँव की
 
अक्षत रोली धूलि चन्दन माटी मेरे गाँव की
हरी धान की सजी बालियाँ, पगडंडी की शान थी
याद रही वो सूनी गलियाँ, बातें उस चौपाल की
मंदिर की वो सजी आरती, उस पीपल के छाँव की
अक्षत रोली धूलि-चन्दन
माटी मेरे गाँव की

बचपन बीता खेल खेल में, झूले, खेत, बथान में
दौड़ लगाती धौरी गैया, शोर मचे खलिहान में
घर में अम्मा बाट जोहती, बाबूजी की डांट थी
अमराई की छीपापती, गुल्ली डंडे की शान थी
अक्षत रोली धूलि-चन्दन
माटी मेरे गाँव की

हरा भरा उपवन था मेरा,अमृत वर्षी प्यास थी
फलों और फूलों से सुरभित,हरियाली कीआस थी
याद रही अम्मा की रोटी, काकी के पकवान की
खेतों में मेहनतसे उपजे, गेहूँ, मक्का, ज्वार की
अक्षत रोली धूलि-चन्दन
माटी मेरे गाँव की

शहरों में खो गयी भावना, अपनेपन की चाह भी
व्यस्त हुए आपाधापी में,कहीं खो गयी आह भी
रिश्तों में बढ़ गयी दूरियाँ, मौसम के त्यौहार भी
बस,मशीनसे दौड़ रहे हैं, सपने भी, मुस्कान भी
अक्षत रोली धूलि-चन्दन
माटी मेरे गाँव की

-पद्मा मिश्रा
१ अक्टूबर २०२४
           

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