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                     मिट्टी में
 
इक दिन हम सब लोग मिलेंगे मिट्टी में
लेकिन मिलकर हमीं खिलेंगे
मिट्टी में

मिट्टी है अनमोल इसे उर्वर रखना है
इसकी छाती पर गऊ का गोबर रखना है
हरे-भरे तब खेत हँसेंगे
मिट्टी में

मिट्टी यानी माँ यह प्यारी बंद करें दोहन
मृदा शुद्ध संरक्षित तो सुंदर हो जीवन
अगर ध्यान नहिं दिया
धसेंगे मिट्टी में

मनुज नहीं हर जीव-जंतु को यह अनुपम उपहार
लेकिन माता झेल रही है नित्य प्रदूषण-मार
सुधरें वरना लोग
गलेंगे मिट्टी में

- गिरीश पंकज
१ अक्टूबर २०२४
           

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