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                    मिट्टी की खुशबू
 
भीनी भीनी सोंधी सोंधी
मेरे गाँव की मिट्टी होती थी
पेड़ो से हवा टकराती थी
आँधियों में जब धूल उड़ा करती थी
उस धूल की महक में मेरे
गाँव की मिट्टी होती थी

देशी खाद बीज और पानी से
फसल लहलहाया करती थी
स्वाद और सुगंध से
थाली सजा करती थी
उस स्वाद में
मेरे गाँव की मिट्टी होती थी

घर के छप्पर पर लगी
बेलों पर गिलकी. सेमफली कद्दू में
जो मिठास होती थी
उस मिठास में
मेरे गाँव की मिट्टी होती थी

गेंदे गुलाब के फूलों से दिन में
बहार होती थी
रातरानी से रात गुलजार होती थी
इन फूलों में जो महक होती थी
उस महक में
मेरे गाँव की मिट्टी होती थी

बनती थी प्रतिमा
और बच्चों के खेलने के खिलोने
उन वच्चों की चहक में
मेरे गाँव की मिट्टी होती थी
शहीदों को अपने अंक में भरने वाली
मेरे गाँव की मिट्टी होती थी

सारी उम्र हायतोबा में कट जाती
आखरी समय में जो पनाह देती थी
मेरे गाँव की मिट्टी होती थी

- संजय सुजय बासल
१ अक्टूबर २०२४
           

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