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                    माटी के प्रेम में
 
वसुधा का मटमैला आँचल
गगन देख अकुलाए
कैसे भर दूँ रंगों से आँचल
सोच सोच थक जाए
सोच सोच थक जाए

चिंतन मंथन करते करते
रोता जाए, उफनता जाए
नदियाँ नाले झरने भरता जाए
पल भर में ही
धरती का रूप खिला
सोंधी सोंधी खुशबू से
रूप महकता जाए
वसुधा का मटमैला आँचल
हरा भरा लहराए
रंग बिरंगे फूलों सी आँखें
नभ को देख देख हर्षाए
बस फिर तो गगन उमड़ घुमड़ के
गरजे नाचे गाए
माटी का रंगबिरंगा रूप निहारे
प्रेम की वर्षा करता जाए

- मीनाक्षी धन्वंतरि
१ अक्टूबर २०२४
           

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