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                    माटी की गंध
 
माटी गंध नथुनों में अटकी
साँस भरूँ ललचाऊँ
लोग कहें अन्तरिक्ष परी
मैं माटी पर इतराऊँ

न गुरुत्व, न पाँव तले कुछ
न बदरा, हवा, न बारिश
अटकी पड़ी उसाँसे अब तो
दूरी पड़ गई भारी
छह बेडरूम का स्पेस केन्द्र
हर सुविधा है पास
व्यायाम अन्वेषण स्लीपिंग किट
पर धरा मिलन की आस

दिन में सोलह बार परिक्रमा
पर धरणी से दूर
माटी से संदेश भोजन पा
तृप्ति मिले भरपूर

- मधु संधु
१ अक्टूबर २०२४
           

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