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                    माटी का शृंगार
 
मातृभूमि को कर नमन, माटी का शृंगार।
पहरी बन चौकस रहें, है भारत से प्यार।।

माटी अपने देश की, धारण करते माथ।
रहते हैं परदेश में, संस्कारों के साथ।।

माटी पर जल कण गिरें, सौंधी उठे सुगंध।
याद देश की आ रही, हिय में उठे उमंग ।।

धरती जल का कर रही, माटी में भंडार।
मेघ गरज के कर रहे, बारिश अपरंपार।।

माटी घूमे चाक पे, कुम्भकार के हाथ।
भांडे गढ़ता नित नए, कलश चढ़े सिर माथ।।

- स्मृति गुप्ता
१ अक्टूबर २०२४
           

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