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              माटी से निर्मित सभी
 
माटी से निर्मित सभी, दीप, कलश और देह।
सब ही माटी में मिले, शेष रहे बस नेह।।

माटी में विष बो रहे, धरती हुई उजाड़।
छाया को हैं खोजते, तरु जब दिये उखाड़।।

गगरी कहे मनुष्य से, काहे फेंके मोय ।
मैं भी माटी से बनी, तू भी माटी होय।।

रिश्ता कोमल पौध सा, मन माटी में रोप
निश-दिन सींचें नेह से, दूर करे सब कोप।

मन माटी की गागरी, अमृत भरियो रोज।
सदाचार सद्भाव में, शीतलता को खोज।।

- रेखा श्रीवास्तव
१ अक्टूबर २०२४
           

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