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                    माटी मात समान
 
अगन पवन जल मृत्तिका, संग मिले आकाश
पंच तत्व से देह का, करती सृष्टि विकास

माटी से जन्में सभी, पलें इसी की गोद
माटी में मिल जाएँगे, अंत समय एक रोज

माटी से ममता बड़ी, करते सभी किसान
अन्नपूर्णा जगत की, माटी मात समान

माटी मिट्टी रज, मृदा, तेरे ही सब नाम
जीवन हो या मरण हो, तू ही आए काम

माटी चाटी कृष्ण ने, रहीं यशोदा टोक
मुख खोला तो दिख गया, मुख में ही तिरलोक

अनगढ़ माटी मैं गुरू, तुम हो कुशल कुम्हार
अपने जैसा ही गढ़ो, माटी से आकार

- अलकेश त्यागी
१ अक्टूबर २०२४
           

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