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                   -बुला गयी माटी
 
आईना यों दिखा गई माटी
सबकी कीमत बता गई माटी

जिंदगी क्या है मैंने पूछा तो
भर के मुट्ठी उड़ा गई माटी

चाक पर शान से चढ़ी जाकर
एक आकार पा गई माटी

उम्र भर ढूँढती रही जिसको
मुझको उससे मिला गई माटी

मैंने अपनी जमीं को चूमा तो
मुझको चंदन बना गई माटी

पास है गाँव, ये लगे हरदम
मुझमें ऐसे समा गई माटी

लाख परदेश में बनालो घर
लौट आना, बुला गई माटी

- रमा प्रवीर वर्मा
१ अक्टूबर २०२४
           

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