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           अम्मा साफ कर रहीं चश्मा

अम्मा साफ कर रही चश्मा
अपने आँचल
बारम्बार

कभी सोचती उम्र बढ़ रही
बच्चों को नित याद कर रही
या कि मोतिया आन घिर रहा
आशंकाएँ
करती वार

धूप अभी निस्तेज हो रही
जाने चादर ओढ़ सो रही
सूरज को जाने की जल्दी
दिन भी सहें
ठंड की मार

धुंध भरा आकाश हो रहा
सड़कों पर विश्वास खो रहा
दृश्य सभी ओझल नैनों से
धुँधला दिखता
सब संसार

- ज्योतिर्मयी पंत
१ दिसंबर २०२१
     

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