अम्मा की यादें कातिक में

 

 
अम्मा सारी परम्पराएँ खूब निभाती थीं
नियम धरम से पूरे कातिक माह नहाती थीं
बड़े भोर उठ विधिवत पूजा-
थाल सजाती थीं

तुलसी जी का अर्चन -वंदन भोग लगाती थीं
नमो नमो तुलसी महारानी स्तुति गाती थीं
द्वादश तिथि को तुलसी जी का
ब्याह रचाती थीं

देवठान को बाबू जी गन्ने ले आते थे
गन्ने के मंडप के नीचे देव जगाते थे
उठो देव गुड़ गारे खाओ टेर लगाते थे
अम्मा जोर जोर से थाली-
सूप बजाती थीं

अम्मा की यादें कातिक में खुशबू सी आती हैं
पूरे घर आँगन को जैसे मह मह महकाती हैं
दीपक की उजली पाँतेंbये कथा बताती हैं
हर देहरी द्वारे पर अम्मा
दीप जलाती थीं

- डॉ. शिवजी श्रीवास्तव
१ नवंबर २०२५

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