नभ में दीपक-सा चाँद जले, जल
में तारों की छाया है
पावन कार्तिक आया है
पवन सुगंधित तुलसी वन से, रंगोली डोले अंगनाई
गोबर लीपे आँगन में भी सजती रैन सुहानी आई
गंगाजल की धारा बोले- सुन रे मन अब निर्मल हो जा
पापों की परतें धोकर के- ज्योतिर्मय दीपावलि हो जा
मन के भीतर धुन आरति की
भक्ति की मीठी माया है
पावन कार्तिक आया है
पथ पर रौशनियाँ उतरी हैं, साँझ सजी है आराधन में
कनक समान लगे हर पत्ती प्राण सुमंगल श्रद्धा-तन में
घर-घर दीपक, घट-घट बाती उत्सव की यह बेला प्यारी
अंधकार से उजियारे तक चली जा रही कनक सवारी
लक्ष्मी पूजन कर मंदिर में
सुख सौभाग्य जगाया है
पावन कार्तिक आया है