पावन कार्तिक मास

 

 
पावन कार्तिक मास शुभद शुभ उत्सव बहु चहके
झूमे नाचे खुशी मनाएँ सारे जन मिलके

चार माह प्रभु शयन करें हैं वेद ग्रंथ कहते
भक्ति भाव से भरा माह यह दान-पुण्य करते
होते धार्मिक अनुष्ठान हैं सात्विक मन रहके
दीप दान को नित है करना
सारे जन मिलके

गंगा युमना पर स्नान करें तन मन पाप हरे
तुलसी माँ की पूजा करके पवित्र भाव भरे
पर्यावरण बचाने का नव बोध पाठ महके
कुदरत के प्रति नतमस्तक हों
सारे जन मिलके

करकचौथ का व्रत निर्जल हर पतिव्रता रखती
देख चाँद नभ फिर छलनी से प्रिय दर्शन करती
भाव समर्पण ढाई आखर चमचम उर चमके
नफरत की खाई को पाटे
सारे जन मिलके

राम अवध लौटे खुशियों के जगमग दीप जले
पर्व दिवाली देश मनाए आशा प्रेम पले
अंतर बाहर ज्योति जले सच मग पर चलके
कार्तिक की महिमा गाएँ
सारे जन मिलके

कृष्ण उठाए गोवर्धन को ब्रज रक्षा करते
इंद्र देव से व्याकुल सारे जन विरोध करते
अंतरतम का तिमिर मिटाएँ बुझी ज्योत बलके
आशा का है दीप जलाएँ
सारे जन मिलके

भाईदूज बहन भाई के रिश्ते हैं सरसे
तिलक लगाकर करे प्रार्थना सारे सुख बरसे
नजर उतारे बुरी बला की बहना मल मलके
दुआ माँगते सलामती की
सारे जन मिलके

देवठान एकादशी पर प्रभु निंद्रा से जगते
होते काम सभी शुभ मंगल मेले हैं लगते
आते हैं हर बार पर्व ये हर्ष खुशी छलके
सुखद रमा ग्यारह को पूजें
सारे जन मिलके

- डॉ मंजु गुप्ता
१ नवंबर २०२५

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