कार्तिक है आया

 

 
शुभ सगुनों की माला ले कर
कार्तिक है आया

लौट गई वर्षा मतवाली
एक किये जल -थल
किन्तु सींच न पाई उसको
प्यासा मन मरुथल

नागफनी के फूल खिले
बस मन को भरमाया

कहीं उमग परवान चढ़ रहे
अलसाये सपने
बुला रहे हैं परदेसी को
घर आओ अपने

धुले-धुले से आसमान पर
चन्दा मुस्काया

खिले काँस के फूल, नदी
सिमटी तट पर आई
ढूँढ़ रही है कहीं मीत को
महकी तरुणाई

चकई-चकवा ने फिर से
गीतों को दुहराया

- मधु प्रधान
१ नवंबर २०२५

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter