सजे घी दीप

 

 
ले नया उल्लास
कार्तिक मास आया,
प्रिय सितारों-से सजे घी-दीप 

मोहिनी रंगावली
करतीं मुदित मन
हो गया द्विगुणित
अचानक आस का धन
स्वप्न के ऑंगन लिए फिर लीप

दीपमालाऍं
प्रकाशित कर रहीं पथ
फिर नयी संभावनाओं के
सजे रथ
कर्म-पथ पर फिर हॅंसे संदीप


धर्म, संयम,
और शुचिता के मधुर पल
मन-सरोवर में
कमल-से भाव निर्मल
मोतियों से सज गए मन-सीप

--त्रिलोक सिंह ठकुरेला
१ नवंबर २०२५

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