मेला का रेला

 
मेला का रेला है
कार्तिक महीना

जगह-जगह लगते हैं जमघट के मेले
दीपों के चाँदों के मिट्टी के डेले
जाड़ा न गरमी
न चिपचप पसीना

छठ मैया आती हैं खाती हैं बीड़ा
समझबूझ होती न गूलर का कीड़ा
सीना फूलाता है
बोया मसीना

कार्तिक ही रुपया है कार्तिक ही धेला
कार्तिक परिश्रम है कार्तिक ही ठेला
कार्तिक ही माहों का
मंत्री कबीना

- शिवानन्द सिंह 'सहयोगी'
१ नवंबर २०२५

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