पावन पुरुषोत्तम वेला

 
यह तन माटी का दीया ज्योति आत्मा की उज्ज्वल
पावन पुरुषोत्तम वेला
प्रभु से जुड़ती है प्रतिपल

कार्तिक में शिव-विष्णु संग- संग हैं पूजे जाते
तुलसी विष्णु को भाती औ शिव को विल्व रिझाते
कार्तिक की शुक्ला नवमी है अक्षय पुण्य कहाती
मन के दीपक जल जाते तन होता निर्मल नर्मल
पावन पुरुषोत्तम वेला
प्रभु से जुड़ती है प्रतिपल

शुक्ल पक्ष तिथि एकादश को प्रभु निद्रा से जागे
चातुर्मास का अंत हुआ मंगल गाओ अब आगे
धन आरोग्य संपदा समृद्धि जन जन के घर आए
पंच दिवस त्योहार मनाएँ दीपावलि की हलचल
पावन पुरुषोत्तम वेला
प्रभु से जुड़ती है प्रतिपल

-ऋता शेखर 'मधु'
१ नवंबर २०२५

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter