कार्तिक मास

 

 
इस पल को तराश
मधुर संगम है कि इसमें, बिजली का प्रकाश

माह कार्तिक झिलमिलाती
ज्योति का वरदान
लाल पीली फुलझड़ी यह
स्वर्ण का मैदान
ऐश्वर्य की सीमा नहीं है, फैलता आकाश

नभ उठाए लाल बादल,
भाल पर टीका
भूमि की रंगीनियों से
स्वर्ग भी फीका
खलबली से व्यस्त गगन, धरा पर अवकाश

चौथ करवा व्रत लिया था
क्षुधा भी आनन्द
मिलन की आशा किरण से
खेलते हैं द्वंद
व्याकुल धरा फिर बाँधती है, प्रेम का भुजपाश

- हरिहर झा
१ नवंबर २०२५

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