कार्तिक बढ़ा रहा कदम

 

 
खतम हुआ वर्षा का मौसम
और कार्तिक बढ़ा रहा कदम
आसमान है नीला नीला
धरती पर हरियाली रे

खेतों ने सोना उपजाया
हर किसान देखो मुस्काया
कहीं पर आलू चना कहीं पर
कहीं पर गेहूँ-राई रे

प्रात: सूरज देर से आए
शाम को जल्दी वापस जाए
छोटे हो गए दिवस देख लो
बढ़ गई रात-लम्बाई रे

मोठे कपड़े ऊनी कपड़े
शॉल और कम्बल के नखरे
प्यारी प्यारी धूप लगेगी
प्यारी लगे रज़ाई रे

मेथी पालक पत्ता गोभी
साग चने का मक्का की रोटी
गरम दूध का स्वाद निराला
जिसमे पड़ी मलाई रे

दीप जला दीवाली मनाई
खील बताशे मिठाई खाई
बहाना से टीका लगवाकर
खुश है देखो भाई रे

खेले कूदे मौज मना ली
नई नई है ड्रेस सिलवा ली
बिना किसी नागा के बच्चों
कर दो शुरू पढ़ाई रे

हरेराम बाजपेयी 'आश'
१ नवंबर २०२५

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