उठो भी देव

 

 
आ गया कार्तिक उठो भी देव
खोलो आँख

सो रहे आषाढ से
देखी न तुमने बाढ
खिसक कर सड़कों पर
कितने आ चुके पहाड़

दब गए यात्री अनेकों हुए बेघर लाख
आ गया कार्तिक उठो भी देव
खोलो आँख

आग ने तांडव किया है
जल चुके कई घर
आज भी फिरते सड़क पर
आदमी बेघर

आस्थाएँ दिलों की होने लगी हैं खाक
आ गया कार्तिक उठो भी देव
खोलो आँख

१ नवंबर २०२५

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