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कतकी के मेले में |
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कतकी के मेले में खोया
बचपन ढूँढ़ रहा है मन।।
अजब गजब करतब दिखलाते
बंदर भालू शेर मिलाते
आसमान तक झूले जाते
कतकी में, मेले-सा जीवित
जीवन ढूँढ़ रहा जीवन।।
टेर लगाती रही बाँसुरी
रोको-रोको धुनें आसुरी
खिलें खील-सी नई पाँखुरी
कतकी के बक्से में बंदी
सपना ढूँढ़ रहा आँगन
साड़ी, बेंदी, सेंदुर, चूड़ी
भीड़ खरीदे ख़ाजा पूड़ी
मिलें जमूड़ा और जमूड़ी
मौन घाट पर जला दीप-सा
उत्सव ढूँढ़ रहा दर्पन
- भावना तिवारी
१ नवंबर २०२५ |
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