कार्तिक की दस्तक

 

 
त्योहारों-पर्वों को भी अब
एक नई दस्तक देनी है

आए पहले देव कनागत
हुई देवियों की भी आगत
बाद दिवाली और दशहरा
होना नवजीवन का स्वागत

रामराज्य के लिए लगा अब
अग्नि परीक्षा तक देनी है

अपने ही अपनों से आहत
होगा कौन-कौन शरणागत
अहं और बल की शह पर प्रभु
हो न एक और महाभारत

लोकतंत्र के शाने पर अब
कुछ को तो रुखसत देनी है

उत्साहों में कमी नहीं पर
पैरों में अब जमीं नहीं पर
बनी हुईं लक्ष्मण रेखाएँ
खुशियाँ ही हैं गमी नहीं पर
..
तूफाँ से पहले की शांति है
आहुतियाँ अब तय देनी है

चलो दीप से दीप जलाएँ
एक सूत्र बँध पर्व मनाएँ
देखें अब उजास उन्नति का
प्रेम और सौहार्द बढ़ाएँ

फैले प्रभा क्षितिज तक किरणें
धरती से नभ तक देनी है

- आकुल
१ नवंबर २०२५

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter