कार्तिक का पहला गुलाब

 

 
कार्तिक का पहला गुलाब
सुर्ख पंखुरियाँ सुबह की धूप में
तमाम पृथ्वी को अपनी चमक से
आंदोलित करती हुई
तहों की बंद परत के बीच से
सुगंध भाप की तरह ऊपर उठती है

वह मात्र सुगंध है गुलाब नहीं
वह रंग
वह गंध
वह पंखुरियों के वर्तुल रूपक में लिपटी
कोमलता, सुकुमारता, सौंदर्य-प्रतीक
दृष्टि दूर तक स्वयं के संग जाना चाहती है

कार के शीशे चढ़ाती गिराती
भंगिमाओं के बीच
मालिकाना भाव से पोषित तत्व को
संपूर्णता में परख लेना चाहती है
मान्यताओं की स्थापना के बीच
वक़्त बीतता हुआ
अचानक दम लेने को थम जाता है

इला कुमार
१ नवंबर २०२५

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