रूप प्रकृति का

 

 
रूप प्रकृति का
आमद आह्लाद की
धरिणी की धरोहर का
इस तरह
कार्तिक मास घर घर
पहुँचाता पैगाम है

अरूप से है रूप तक
विचरण करता हुआ
अलग अलग रूप जैसे
शब्द है खिला हुआ
नयनाभिराम सौंदर्य का
देता आयाम है

गाँव गाँव अपना आँगना
लीप रही उल्लसित सखियाँ
रंग बिरंगी रंगोली
सुघड़ बनाती
संग गीत गातीं
हिल मिल सखियाँ

दिवाली के स्वागत में
नए नए कपड़ों की चकमक
कार्तिक मेलों की धूम मची
दिया गुजरिया सज गए मेले
नौ दिन माँ घर सजातीं

देतीं हैं आशीष
सदा मन उजियारा हो
हरे भरे खलिहान
धन धान्य ख़ूब भरा हो
लक्ष्मी सभी को मिले
न कोई दुःखियारा हो

उत्सव के उल्लास में
आया है यह कार्तिक
जगमग दीप जले
रंगोली ख़ूब सजे
खुशहाली का संदेस
लाया है यह कार्तिक

- अनुपमा त्रिपाठी
१ नवंबर २०२५

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter