महारास की रात में

 

 
महारास की रात में, अमृत की बरसात
उसी रात की भोर से, कातिक की शुरुआत

महाभाव के बोध से, जगी अलौकिक प्रीति
तन-मन निर्मल हो गये, हुई प्रगल्भ प्रतीति

चौथे दिन करवा लिये,भाई आया द्वार।
पूजन,व्रत-शुचि-निर्जला,सँग सोलह सिंगार

गौरी वर देकर कहें , "सदा सुहागन नार"
प्रियतम की छवि देख तू, छलनी के उस पार

करवा टोटी से निकल,जाड़ा हुआ स्वतंत्र।
पंडित जी पढ़ने लगे, शुभ-विवाह के मंत्र।

धन की तेरस, रूप की , चौदस आती साथ।
सुख-समृद्धि चलती सदा , हाथों में ले हाथ।

पूर्ण अमावस की निशा, घर लौटे श्री राम।
दीपों से धरती सजी,अम्बर हुआ ललाम

शरद,शीत ऋतु सन्धि की, बेला छवि-अभिराम
देवों के सँग शयन से, जाग गये रति-काम

खंजन आये आँगना, नयनन के उपमान
मक्का,बजरा,उर्द के, साथ कट गये धान

मास अंत में पूर्णिमा, मेला, नदी नहान
जग पालनकर्ता मुदित, होकर दें वरदान

- उमा प्रसाद लोधी
१ नवंबर २०२५

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