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कातिक होता खास
(दोहे)
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पंचतत्व की पूज से छाई खुशी
अपार
कातिक मन में बो रहा, शुद्ध भाव संस्कार
होई आठे पूजती, रखती माँ उपवास
बेटी-बेटे के लिए, कातिक होता खास
खुशबू भीगी पातियाँ, खोलें मन की बात
सुधियाँ दीप सजा रहीं, दिवाली की रात
उगते-ढलते सूर्य को पूज रहे नर-नार
स्नेह स्वेद से सज रहा छठ का यह तिवहार
आई कातिक पूर्णिमा, सजे-धजे सब घाट
हर-हर गंगे गूँजते, मेले लगे विराट
ताजे मीठे धान से, भरे खेत-खलियान
बना रही माँ-चाचियाँ, नये-नये पकवान
चाँद डाकिया बाँटता, ओस सुधा भर थाल
सितारों की बरात से, सजे रात का भाल
पूजा वंदन अर्चना, श्रद्धा औ विश्वास
बनी सात्विक भावना, आया कातिक मास
कातिक लिखता चिट्ठियाँ, नव पीढ़ी के नाम
हरी-भरी धरती रहे, सुख - शान्ति का धाम
- पारुल तोमर
१ नवंबर २०२५ |
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