नव मास आ गया है

 

 
देवों के जागरण का नव मास आ गया है
कातिक में कुमुदिनी को, मधुमास आ गया है

घुसपैठ हो चली है, सिहरन की अब हवा में
यह मास सेनापति को, भी रास आ गया है

त्योहार, उत्सवों की, है धूम मच गई अब
कतकी के मेले में जन उल्लास आ गया है

दीपों की मालिका भी है दूर कर रही तम
फिर से अवध में देखो ये उजास आ गया है

यमलोक छोड़ यमुना बहना से है मिलने को
यम भाई दूज पर ही, फिर पास आ गया है

तुलसी प्रतीक्षारत है, सजधज के आंगना में,
हरि आएंगे ये मन में विश्वास आ गया है

देवों की दिवाली भी हर घाट- घाट मनती
हर्षित है मन महीना यह खास आ गया है

- पूर्णिमा जोशी
१ नवंबर २०२५

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter