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नव मास आ गया है
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देवों के जागरण का नव मास आ
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कातिक में कुमुदिनी को, मधुमास आ गया है
घुसपैठ हो चली है, सिहरन की अब हवा में
यह मास सेनापति को, भी रास आ गया है
त्योहार, उत्सवों की, है धूम मच गई अब
कतकी के मेले में जन उल्लास आ गया है
दीपों की मालिका भी है दूर कर रही तम
फिर से अवध में देखो ये उजास आ गया है
यमलोक छोड़ यमुना बहना से है मिलने को
यम भाई दूज पर ही, फिर पास आ गया है
तुलसी प्रतीक्षारत है, सजधज के आंगना में,
हरि आएंगे ये मन में विश्वास आ गया है
देवों की दिवाली भी हर घाट- घाट मनती
हर्षित है मन महीना यह खास आ गया है-
पूर्णिमा जोशी
१ नवंबर २०२५
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