चलो कातिक नहाएँ

 

 
आ गया पावन महीना अब चलो कातिक नहाएँ
सब महीनों में नगीना अब चलो कातिक नहाएँ

हो रही पर्वों की है भरमार अब इस मास में ही
साथ खुशियों के है जीना अब चलो कातिक नहाएँ

सैकड़ों जलते हैं जब दीपक तमस का नाश होता
फैलता परकाश झीना अब चलो कातिक नहाएँ

अपने पापों की भी गठरी अब बहा दें इस नदी में
पार हो अपना सफ़ीना अब चलो कातिक नहाएँ

कृष्ण राधा विष्णु शिव तुलसी के पूजन का है अवसर
हो समय हर दुखविहीना अब चलो कातिक नहाएँ

तामसिक भोजन से बचना और मांसाहार त्यागो
छोडना मदिरा को पीना अब चलो कातिक नहाएँ

- शरद तैलंग
१ नवंबर २०२५

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