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ज्योति पर्व
संकलन

 

रात की बारात

छल्लों से लिपट कर
कायनात है बिखरी आज
जगमग है गुलशन
आई है रात की बारात
गिरी हैं बिजलियाँ गूँजा है समाँ
फिरकी सा घूमा
उजाले ने अँधेरे को चूमा
हुई जुगनुओं की बरसात
जली फुलझड़ी जलते दिये
दुल्हन खड़ी है आज
जगमग हुआ कोना कोना
अँधेरा रह न जाए पास
दीवारों पर है ताज़गी
तारों पर उमंग परवाज़
मीनारों पर सादगी
बस दीये दिखते हैं आज
टिमटिमाते तारों को
ज़मीं पर आना पड़ा है आज
हमने आसमाँ को खुद सजा कर खोला है ये राज़
खुशहाली के लिए पूजा
खुशी से बड़ा न धन दूजा
इसे बाँट कर फैलाओ तो
होगा यह हर रात दूना

-शुभाशीष गुप्ता

   

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