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ज्योति पर्व
संकलन

 

माटी का दीपक

माटी का दीपक,
साँसों ने जीवन-बाती बाला,
दिया किसी ने स्नेह,
किसी ने ओजमुखी उजियाला।

जड़ चेतन, सबकी सहकृति से
जलन ज्योति ने पा ली,
और आँख का दिया जला
ले कर कर की उजियाली।

घूँघट खोल अँधेरी दुलहिन का
रहस्य रस लूटा,
बचा न कोई रंध्र तिमिर का
विभा-बिंब जब फूटा।

लेकिन रहा दीप के नीचे
का दर-दरपन काला,
मिला न अब तक पिया मिलन का
दिया जलाने वाला।

माँग रहा मैं राम राज की
खुशी और खुशहाली
मूक बने लौ, दर दर वितरित
हो द्युति की दीवाली!

बढ़ी विषमताओं से लड़कर,
ऐसा शर संधानो,
बिंधे लक्ष्य इस बार वक्ष तक,
तो प्रत्यंचा तानो।

बढ़ो एक मुख! दश-मुख ले
रिपु रचना को छलता है,
अंत समय का अरि का पौरुष
और अधिक खलता है।

मिली अशोक-वाटिका!
लेकिन शोक ग्रसित सीता है,
शंकित संगर से भविष्य से
अब भी भय-भीता है।

और भारत रत हैं आगत के
स्वागत में, कृश-काया,
आया 'राम-राज्य', कुछ ऐसा
रंग न मुख पर छाया।

- शिव सिंह 'सरोज'

  

 दादी माँ का संदेसा

बहुरिया चल जल्दी कर निराली
देखो आय रही दीवाली

बरखा का मौसम अब बीता
रह गयी उसकी सीलन बाकी
दिखला घर सारा भास्कर को
मेटे गंध हरे सारा शीत
मन पाए अपनी मनभाती दीवाली
बहुरिया चल जल्दी कर निराली

देखो कितनी धूल पड़ी है
कितना सीला घर सारा
आते होंगे प्लंबर मिस्त्री
डलवाना है सिलमिट गारा
कह आया था बबुआ कल साँझ
आता ही होगा किशना पुताईवाला
बहुरिया चल जल्दी कर निराली
देखो आय रही दीवाली

कोठारों में अन्न पड़ा है
धूप बड़ी है मौके की
दिखला जरा वो गुलाबी साड़ी
याद है मेरे मैके की
आई शक्कर के खिलौनों की गंध
अरी याद दिलाती चौके की
बहुरिया चल जल्दी कर निराली
देखो आय रही दीवाली

सिलवाना है नया गरारा
माँग रही थी चुनिया कल
बट्टू भी ज़िद कर बैठा है
दिलवाने होंगे अनार उसको दस
भइय्यन को इक कुर्ता पैजामा
औ तेरी मेरी इक इक धोती
बहुरिया चल जल्दी कर निराली
देख न आ ही चुकी दीवाली

कित्ते सारे काम पड़े हैं
बस कर अब ना गप्पें मार
घर सारा है अभी सहेजना
बनने को हैं कितने व्यंजन
दर्ज़ी मुआ न अब तक आया
बबुआ आतिशबाजी ना लाया
बहुरिया अब मैं क्या कहूँ
देख न आ ही चुकी दीवाली

धुले दीप ना सूखे अब तक
खील बीनना अब भी बाकी
हाय राम मैं तूल भी भूली
बची लक्ष्मी गणेश की चादर भी
इतना कह अम्मा रो बैठी
मैं सब कुछ भूल उन तक भागी
अब काहे को रोए अम्मा
देख आज है दिन दीवाली

ना घबरा हो चुके सब कारज पूरे
चुनिया बट्टू दोनों खुश हैं
दे डाली सब की मजदूरी
घर रँगा चुँगा तय्यार खड़ा है
भइय्यन के संग बिट्टन आई
चल अम्मा अब कर ले पूजा
भगवन तुम्हरी राह तके हैं

वा के बाद सब मिलजुल के
छोड़ैंगे पटाखे खावेंगे मिठाई
जगर मगर होगी दीपों की
मन पाएगी मनचीती दीवाली
उठ अम्मा अब कह भी दे
बहुरिया चल जल्दी कर निराली
देखो आय गई दीवाली
देखो आय गई दीवाली

- ऋचा शर्मा

 

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