नूपुर की
छम-छम, थिरक रहे अंग!
चंग करे ढप-ढप, बरस रहे रंग!
टेसू के
फूलों में चमक आ गई,
पीली-पीली सरसों मन लुभा गई;
झूम-झूम जाए ज्यों पी ली हो भंग!
चंग करे ढप-ढप, बरस रहे रंग!
खनक सुन
कंगन की, गीत जग गया,
बहुत ही सहज में मन मीत बन गया,
वीणा के तारों ने छेड़ दी तरंग
चंग करे ढप-ढप, बरस रहे रंग!
दुनिया
है सतरंगी सपने सजाए,
पर राधा रंग अपने श्याम पर लगाए;
अंबर में उड़े सब रंग एक संग!
चंग करे ढप-ढप, बरस रहे रंग!
फागुन
में फाग खेल खुशियाँ मनाना,
बैर-भाव भूल सबको गले से लगाना,
प्रीति-रीत बढ़ने का प्यारा है ढंग!
चंग करे ढप-ढप, बरस रहे रंग!
-डॉ.
विष्णु सक्सेना
१ मार्च
२००६
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