होली
है!!
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पवन बसंती |
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पवन बसंती संग जब, उड़ती धूल अबीर
आम-बौर, महुआ-महक, तन-मन करे अधीर
ऋतु बसंत बिखराए जब, उपवन में मकरंद
प्रणयनाद कर चूसना, भौंरे करें पसंद
ठंड घटी, गरमी बढ़ी, पवन मचाए शोर
टेसू की लाली सजे, जंगल में चहुँ ओर
पकी फसल चारों तरफ़, घर आएगा अन्न
होली पर्व जताए तब, होंगे कृषक प्रसन्न
मदमाते कानन, चमन, झरने, नदी, तलाब
टेसू, सरसों धरा का, चौगुन करें शबाब
टेसू, सरसों संग जब, दिखते पुष्पित बाग़
आने लगती याद तब, निज गाँव की फाग
टेसू की लाली भरा, सरसों का कालीन
मधुमासी बिखरे छटा, उस पर हो आसीन
होली प्रेम प्रतीक है, भावों का है मेल
इसे समझिए मत कभी, रंगों का बस खेल
फागुन फीका सा लगे, घर आए न कंत
जानूँ न इस विरह का, होगा कैसे अंत
सिमट रहा है दायरा, हुए पड़ोसी दूर
होली अब होली कहाँ, केवल है दस्तूर
मिलन हमारा कर सके, खुशियों की बौछार
तभी सार्थक मानिए, होली का त्यौहार
विजय किसलय
९ मार्च २००९ |
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