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छलक-छलक रंग छितरा के,
पी मोसे छली-छबि छिपा के,
जो नैनन निश्छलता भर कर,
बाँध मुझे भरमा रहे हो,
निज दरस का रस दिखला के,
प्रेम इंगित इठला रहे हो,
तो जान लो कर लाख मनचाही,
न चले है कपट इह कन्हाई,
सरक-सरक चल छोड़ मोरी कंठी,
न निरख नसि चल हट पाखंडी,
रिझत-रिझत तोरे नैना रपटे,
खिजत-खिजत मोरी चूड़ी़ चटके,
छल-रंग भरी अपनी पिचकारी,
मोड़ मोसे निज छटंक निराली,
हुन माफ़ी माँगत फिरो न बैरी,
होली दिवस बरजोरी कैरी?
हिय सिँगारो ले उर की प्रीति,
चल मान हार मान मैं ही जीती,
पर तुम बिन जो मैं पूरी अधूरी,
राग-रंग संग पाटो इह दूरी,
घुलत-घुलत गुड़ से तोरे बैना,
चुगत-चुगत मिसरिम मन-मैना,
इस होली मोरी चूनर रंग दे,
खिलत-खिलत हो रस भरे रैना।
स्वाती भलोटिया
१७ मार्च २००८
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