होली की पूर्णिम संध्या पर
आज मेरा एकाकी मन,
मुखरित हुआ है ऐसे जैसे
राधा ने पाया मोहन,
सपनों में बसने वाले ने
धूम मचाई हैं नयनन,
बरसाने में खेली जैसे
राधा होली संग किशन
गाल गुलाल से लाल हुए हैं
सतरंगों में रंगी चुनर,
मन गलियारा चहका ऐसे
मधु पाकर जैसे मधुबन,
फाग की आग लगी है जब से
निखरा तन मन बन कुंदन,
बरसों सोया भाग जगा यों
पा होली अवसर पावन,
सत्यनारायण सिंह
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