पीत-पीत हुए
पात
सिकुड़ी-सिकुड़ी-सी रात
ठिठुरन का अंत आ गया
देखो वसंत आ गया।।
मादक
सुगंध से भरी
पंथ-पंथ आम्र मंजरी
कोयलिया कूक-कूक कर
इठलाती फिरे बाबरी।
जाती है जहाँ दृष्टि
मनहारी सकल सृष्टि
लास्य दिग दिगंत छा गया।
देखो वसंत आ गया।।
शीशम के तारुण्य का
आलिंगन करती लता
रस का अनुरागी भ्रमर
कलियों का पूछता पता।
सिमटी-सी खड़ी भला
सकुचायी शकुंतला
मानो दुष्यंत आ गया।
देखो वसंत आ गया।।
पर्वत का
ऊँचा शिखर
ओढ़े हैं किंशुकी सुमन
सरसों के फूलों भरा
वासंती मोहक उपवन
करने कामाग्नि दहन
केसरिया वस्त्र पहन
मानों कोई संत आ गया
देखो वसंत आ गया।
-शास्त्री
नित्यगोपाल कटारे
९ मार्च
२००६
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