तुम बिन मोय आज भावै न बसंत
मेरे कित गए कंत रसवंत चले आओ जी
सघन उदासी की घटान कू हटाय तुम
चंदा बन नेह के गगन मुसकाओ जी
देखो ऋतुराज साजे फूलन के साज
देखि-देखि निज राज आज फूलौ न समायो जी
जाते हू चटख रंग प्रीति सों सजाए अंग
ऋतुराज पै हू प्रतिराज बन छाऔ जी।
आए ऋतुराज तो बिसार सारे काज
कोई मीठी-मीठी धुन गुनगुनाने लगी धरती
सोलहो शृंगार कर रूप को सँवार पीली
ओढ़नी को ओढ़ मुसकाने लगी धरती
प्रेम का पराग सब ओर उठा जाग तो
बगीचे और बाग महकाने लगी धरती
फूलों की सुगंध से भ्रमर के नवीन
अनुबंध छंद-छंद में लिखाने लगी
सरिता शर्मा
९ मार्च २००६
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