होली-सा त्योहार न मिलता, लंदन
और शंघाई में।
आता है आनंद बहुत ही, होली की ठंडाई में।।
सब मुख से लगा गुलाल रहे।
रंग भरि-भरि लोटा डाल रहे।।
छुप कर बैठा था भोला भी, ढूँढा उसे रजाई में।
होली-सा त्योहार न मिलता, लंदन और शंघाई में।
रंग से कोई रहा न डर।
खेलें बालक, नारी- नर ।।
गुझियों का आनन्द अलग है, मिले न किसी मिठाई में।
होली-सा त्योहार न मिलता, लंदन और शंघाई में।।
ब्रज में खूब मची होली।
गलिन-गलिन घूमें टोली।।
द्वेष भावना मिटे ह्रदय से, मान बढ़े लघुताई में।
होली-सा त्योहार न मिलता, लंदन और शंघाई में।।
गोरी के गाल गुलाल छुए।
जो गाल थे गोरे लाल हुए।।
लगता है ज्यों होली होती, राधा और कन्हाई में।
होली-सा त्योहार न मिलता, लंदन और शंघाई में।।
झूम रहे सब गीतों पर।
डाल रहे रंग मीतों पर।।
कपड़े रंगे, रंगे चौबारे, कुछ जन लगे सफ़ाई में।
होली-सा त्योहार न मिलता, लंदन और शंघाई में।।
-संतोष कुमार
सिंह
१७ मार्च २००८
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