चैत की गुहार पे,
फागुनी बयार में
मद भरे झुके नयन
प्रिय तुम्हारी आस में
टेसुओं के फूल से
बूँद बूँद घुल रहे।
चहुँ दिशा अबीर है
फाग का खुमार है
ढोलकी की थाप पर
प्रिय तुम्हारी राह में
ये रुके रुके कदम
डगमगाए चल रहे।
प्रीत का गुलाल है
व्याकुल मन प्राण है
हूक हीय उठ रही
प्रिय तुम्हारी चाह में
ओढ़नी की ओट में
साँस साँस जल रही।
पारुल चांद पुखराज
१७ मार्च २००८
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