होली
है
!!

 

 

 

 

रंग : शब्द चित्र


 


तुमने हवा में बिखेरे रंग
मैं सकुचाई
तुमने रंगों की ओढ़ा दी चादर
मैं बच न पाई
रंगों का आवरण था घना
मेरी कल्पनाओं में उतर आए
इन्द्रधनुषी रंग।


मेरे जीवन में ऐसे आए रंग
जैसे पहाड़ के सीने पर
उतर आती है हरियाली
जैसे खेत ओढ़ लेते हैं पीली चुनरिया
जैसे बुरांस के दरख्तों पर
झूलने लगते हैं सुर्ख लाल फूल

सचमुच मेरे जीवन में ऐसे आए रंग
तुम आए जब रंगों का मौसम बन
मैं रंग गई तुम्हारे रंग!

गुरमीत बेदी
१७ मार्च २००८

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter