नैनों के खारे फवारों की होली।
खेलो, न खेलो! होली तो हो ली।
दशानन अवध के सिंहासन चढ़ा है,
डुलाता चँवर राम पीछे खड़ा है।
लखन घिस रहा बैठकर लाल चंदन,
भरत पादुकाएँ लिए सो रहा है।
फटी है सिया की चुनरिया व चोली,
खेलो, न खेलो! होली तो हो ली।
लुटेरे लगे लूटने दिन-दहाड़े,
दिखाकर छुरे, बम, तमंचे, कुल्हाड़े।
हुई आज गाँधी-सरीखी ग़रीबी,
लँगोटी पहन, लाज अपनी उघाड़े।
लगा लो इसे राख या रंग-रोली,
खेलो, न खेलो! होली तो हो ली।
महाभोज होने लगा तिलचटों में,
बँटा देश बाज़ीगरों में नटों में।
बजी भूख की ढपलियाँ मरघटों में,
हुई प्यास रुसवा नदी-पनघटों में।
मुहर्रम-सरीखी लगे आज होली,
खेलो, न खेलो! होली तो हो ली।
भुवनेश कुमार
१७ मार्च २००८
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