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हे वृंदावन, गोकुल, मथुरा,
उत्तम भाग तुम्हारे!
गोप, गोपियों की होली को, देखें नैन हमारे।
इस मिट्टी का कण-कण
कान्हा, की खुश्बू से महके,
राधा, मीरा की श्रद्धा के, रंग बहुत ही प्यारे।
हाथों में रंग, आँखों में रंग,
मन में रंग ही रंग,
प्रेम रंग में रंग रहे हैं, हम सारे के सारे।
सूरदास के भजन रसीले,
यमुना का संगीत,
सुन सुनके ही धन्य हो रहे, सूरज, चंदा, तारे।
यों लगता है जैसे कि ये,
रंगों का मौसम है,
रंगों की वर्षा में भीगें, धरती और नज़ारे।
सुन मोहन! ये माया सुंदर,
इसके रंग भी सुंदर,
पर तुझसे कोई न सुंदर, कहते होश हमारे।
अशोक कुमार वशिष्ठ
१७ मार्च २००८
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